U.P.Gov.Reg.no. 615 /16-17 मनुष्य की सहायता प्रथम धर्म है। उ.प्र.सरकार पंजी. सं. 615 /16-17
USS Foundation India
हमारा देश कृषि प्रधान देश है। हमारे देश की आबादी का आधा से ज्यादा हिस्सा आज भी कृषि पर ही निर्भर है। और हमारी अर्थव्यवस्था का भी एक बहुत बड़ा हिस्सा कृषि पर ही आधारित है। हम सभी अपने जीवन में बहुत अच्छा करते हैं। और कर भी रहे हैं। लेकिन हम उसके बारे में नहीं सोचते जो मेरा पेट पालता है। हम सोचते हैं। कि पैसा देकर कोई चीज खरीद रहे हैं। पैसा देकर भूख मिटा रहे हैं। पैसा देकर हम अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति कर रहे हैं। लेकिन आप के जीवित रहने हेतु जो भी आप की मूलभूत आवश्यकताएं हैं। उसको पूरा करने के लिए आप जो भी पैसा देते हैं। वह सीधे एक किसान के पास नहीं पहुंचता है। उस पैसे का बहुत बड़ा हिस्सा बीच में ही बट जाता है। और एक छोटा भाग ही किसान के पास पहुंचता है। एक बार की बात है। एक किसान अपनी मोटरसाइकिल लेकर ठंडा के दिन में रोड से गुजर रहा था। उसने बड़े बोरे में सब्जियां पीछे बांध रखी थी। उसने उस सब्जी को रात में ही सब्जी मंडी में पहुंचाना जरूरी समझा। क्योंकि वह सब्जी सुबह तक सभी के घरों में पहुंच सके। उसने बोरे बांधकर रोड पर चल रहा था। बोरे की साइड बड़ी होने के कारण, पीछे कुछ गाड़ियां जो ओवरटेक नहीं कर पा रही थी। फिर कुछ मोटरसाइकिल वालों ने उस किसान को ओवरटेक किया। और आगे आकर गालियां देने लगे। किसान अपने द्रवित आंखों और दुखी हृदय से उनको देख रहा था। उन्होंने गालियां दिया। और आगे बढ़ गए। आखिर सोचिए। किसान आपके लिए ही ठंडी रात में, सर्दी की रात में सब्जी पहुंचा रहा है। कि मंडी में सुबह तक आपको मिल सके। और जो आपके लिए भोजन का प्रबंध कर रहा है। आप उसी को गाली दे रहे हैं। आप सोचते हैं। कि मैं पैसा देकर खरीदता हूं। लेकिन वह पैसा सीधे किसान के पास नहीं जाता है। मोटरसाइकिल पर सब्जी को लेकर किसान दुखी मन से आगे पुनः बढा और उसने सोचा कि आखिर समाज में, मैं जिसके लिए भला कर रहा हूं। जिसकी लिए मैं सोच रहा हूं। वही आज हमें गालियां दे रहा है। वाह रे समाज। लेकिन वह किसान हार नहीं माना। और उसने लगातार गालियों को सुनने के बाद भी अपने दिनचर्या को लगातार करता रहा। और लगातार सब्जियां, फल, फूल, अनाज मंडी तक पहुंचाते रहा। आखिर सोचिए। थोड़ी सी सब्जी और अनाज महंगे होते हैं। तो हमलोग चिल्लाने लगते हैं। कि बहुत ही महंगाई हो गई है। लेकिन अगर मोबाइल, कंप्यूटर पार्ट्स, इलेक्ट्रिक पार्ट्स, गाड़ियां महंगी होती है। तो हम लोग यह नहीं कहते हैं। कि महंगाई बढ़ी है। हमलोग कहते हैं। कि नए मॉडल की गाड़ियां आई हुई है। लेकिन जब रोजमर्रा की चीजें खाने - पीने की चीजें महंगी होती हैं। तो हमें महंगाई दिखने लगती है। जब एंबुलेंस के लिए रास्ते दिए जा सकते हैं। जो एक आदमी की जान बचाता है। तो किसान तो अपने जीवन काल में लाखों लोगों की जिंदगी बचाता है। लाखों लोगों के भूख मिटाता है। तो फिर उसके लिए क्यों नहीं अलग से व्यवस्थाएं की जाती हैं। आखिर किसान के लिए क्यों नहीं व्यवस्थाएं होती हैं। किसान जब सब्जियां लेकर शहर पहुंचता है। तो क्या आप की गाली सुनने के लिए पहुंचता है। आपका पेट पालने के लिए पहुंचता है। आपको सही समय का भोजन मिले। इसके लिए वो किसान पहुंचता है। वह फिर उसके लिए क्यों नहीं अलग से व्यवस्था की जा रही है। वह तो एक बार में एक दिन में सैकड़ों लोगों की जिंदगियां बचाता है। सैकड़ों लोगों के भोजन की व्यवस्था कर आता है। तो फिर उसके लिए अलग से क्यों नहीं सुविधाएं दी जाती हैं। जब भी कोई किसान अनाज, फल, फूल, दूध लेकर अगर आपके सामने से गुजरे तो उसको अवश्य जगह दीजिए। क्योंकि वह आपके लिए ही वह फल, फूल, सब्जी, अनाज लेकर जा रहा है। कहानी विचारणीय है। जो विचार के योग्य है। जरा सोचिए। विचार कीजिए। बातों को शेयर कीजिए।
लेखनी - शशि शंकर पटेल जी ( सचिव - यू.एस.एस.फाउण्डेशन )
संस्था में गाया जाने वाला प्रार्थना ।। जयति जय जय माँ सरस्वती ।। जयति वीणा धारणी जयति पद्मासना माता जयति शुभ वरदायिनी जगत का कल्याण कर माँ तुम हो विघ्न विनाशिनी ।। जयति जय जय माँ सरस्वती ।। कमल आसन छोड़ कर माँ देख जग की वेदना शान्ति की सरिता बहा दे फिर से जग में जननी माँ ।। जयति जय जय माँ सरस्वती ।। ।। जयति जय जय माँ सरस्वती ।। ।। जयति जय जय माँ सरस्वती ।।