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(ब्लॉग)

U.P.Gov.Reg.no. 615 /16-17 मनुष्य की सहायता प्रथम धर्म है। उ.प्र.सरकार पंजी. सं. 615 /16-17

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Cinque Terre
शीर्षक : मां की ममता

मैं रात को देर में सोया था। सुबह जगा तो मीटिंग में जाने के लिए लेट होने लगा। मैं जल्दी-जल्दी मीटिंग के लिए तैयार होने लगा। मैं कंपनी आधे घंटे लेट से पहुंचा। कंपनी के सारे अधिकारी मेरा इंतजार कर रहे थे। मीटिंग लगभग 3 घंटे चलकर 12:00 बजे खत्म हुआ। मैं घर आया और थका था। जिसके कारण सोफे पर बैठा था। आंखें कब लग गई पता ही नहीं चला। मैं अपने बचपन में खो गया।
  हम लोग दो भाई थे। पिताजी मजदूरी करते थे। और मां गृहिणी रही थी। कभी-कभी पिताजी को काम मिलता, तो कभी नहीं मिलता था। इस कारण घर की स्थिति बहुत ही खराब थी। पैसा ना रहने के कारण विद्यालय में भी दाखिला नहीं हो पाया। अतः हम लोग घर पर ही पढ़ते थे। किताबें फटी हुई और स्लेट ऐसा था। कि खली से बार - बार लिखने पर भी नहीं उगता था। पिताजी शाम को घर पर आए। और पैसा मां के हाथ में दिए। मां आटा लेकर आई। पैसा न होने के कारण शाम को सब्जी नहीं खरीद पाते थे। पिताजी बोले जल्दी बनाओ भूख लगी है। मां आटा सानकर छह लोईया बना दी। आग पर सेकने के बाद पिताजी को दो और हम लोगों को एक - एक थाली में रखकर बढ़ा दिया। मैं मां से बोला तुम भी खा लो मां बोली तुम लोग के बाद मैं खाऊंगी। खाने के बाद हम लोग सो गए। लेकिन मां आधी रोटी खाई और डेढ़ रोटी बचा कर रख दिया। हमें सुबह आधी रोटी मिलती थी। और भाई जी बड़े थे। इसलिए उन्हें एक रोटी मिलती थी। सोचिए आधी रोटी खाकर कोई कैसे जिंदा रह सकता है। वे सिर्फ मां ही जिंदा रह सकती है। सुबह हुआ, पिताजी काम पर चले गए। और मां बेचारी रात की बची डेढ़ रोटी हम लोगों के आगे परोस दिया। खाना खाकर हम लोग खेलने लगे। सोचिए वह मां आधा रोटी खाकर 24 घंटे कैसे जिंदा रह सकती है। जो कि सुबह खाना नहीं बनता था।
  आज तो शाम को खिचड़ी बनेगा। इसलिए हम लोग बहुत ही खुश थे। शाम को पिताजी आए। और उस दिन उनको मजदूरी कम मिली थी। पैसा मां के हाथ में रख दिया। और मां दुकान से जाकर सामान लाई। और खिचड़ी बनाना शुरू कर दिया। खिचड़ी बनाकर, सबके सामने परोस दिया। किसी ने दरवाजे पर दस्तक दिया। मां दरवाजा खोलने चली गई। तभी हमें प्यास लगी। और मैं किचन में जा पहुंचा। पानी लेकर आ रहा था। तो मैंने देखा कि बर्तन में तो खिचड़ी है। ही नहीं, आखिर मां क्या खाएगी। अब मैं पानी लेकर बैठ गया, खाने लगा। मां आई मैंने बोला मां खा लो। तो मां बोली, मैं बाद में खाऊंगी। उस रात मां सिर्फ गर्म पानी पीकर ही सो गई। क्योंकि खिचड़ी बचा ही नहीं था। खाने के लिए, मैं उस दिन बहुत ही दुखी था। रोने लगा, आंखों में आंसू की धारा बहने लगी।
   आंखें खुली तो, बड़े भाई जी हमें जगा रहे थे। आंखों के आंसू से कोर्ट भींग चुका था। आज मेरे पास सब कुछ है। लेकिन मेरे पास मां नहीं है। आज भी मां की बहुत याद आती है। मेरे जीवन में मां की कमी आज भी खलती है।

लेखनी - शशि शंकर पटेल जी
( सचिव - यू.एस.एस.फाउण्डेशन )

भारत में कोरोना का रिकवरी रेट बहुत ही अच्छा है। लेकिन लापरवाही
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हे भगवान कितना बदल गया इंसान। आज इंसान ही इंसान को पहचानने......
मास्क न लगाकर अपने आपको थर्ड स्टेज में भेज रहे हैं। लेकिन.........
आज हम सभी अपने दिनचर्या में लगे हुए है। अपने कार्यों .........
          संस्था में गाया जाने वाला प्रार्थना    
            ।। जयति जय जय माँ सरस्वती  ।।
                   जयति वीणा धारणी
                  जयति पद्मासना माता
                  जयति शुभ वरदायिनी
                जगत का कल्याण कर माँ
                तुम हो विघ्न विनाशिनी
            ।। जयति जय जय माँ सरस्वती  ।।
               कमल आसन छोड़ कर माँ
                 देख जग की वेदना
               शान्ति की सरिता बहा दे
              फिर से जग में जननी माँ
           ।। जयति जय जय माँ सरस्वती  ।।
           ।। जयति जय जय माँ सरस्वती  ।।
           ।। जयति जय जय माँ सरस्वती  ।।
                    
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