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(ब्लॉग)

U.P.Gov.Reg.no. 615 /16-17 मनुष्य की सहायता प्रथम धर्म है। उ.प्र.सरकार पंजी. सं. 615 /16-17

USS Foundation India

Cinque Terre
शीर्षक : मन से बनिए समाजसेवी।

हम सभी सेवा करते हैं। और आगे भी करते ही रहते हैं। सेवा किसी भी रूप में हो सकता है। वह चाहे मां-बाप की सेवा हो, देश की सेवा हो, या समाज की सेवा हो, लेकिन हम सभी को मानसिक रूप से सेवक बनना है। हम किसी भी रूप में सेवा कर सकते हैं। जीवन में प्रतिक्षण ईश्वर सभी को सेवा करने का मौका देता है। प्रत्येक क्षण ईश्वर उस सेवा संबंधित क्षणिक सुख प्रदान करता है। मन से समाजसेवी होने का मतलब है। कि अपने कर्तव्य का समाज के प्रति निर्वाह करना। अगर हम रोड पर कूड़ा नहीं फेंक रहे हैं, तो वह भी एक सेवा है। हम अपने समाज को गंदा होने से बचा रहे हैं। अगर हम अपनी सभ्यता संस्कृति का प्रचार प्रसार कर रहे हैं। तो वह भी एक सेवा है। हम अपने पुरातन धर्म, सभ्यता संस्कृति से लोगों को अवगत करा रहे हैं। पिता के बुढ़ापे की लाठी बनना यह भी एक सेवा है। हम अपने आसपास के जगह में ही सेवा करने का मौका ढूंढ सकते हैं। तलाश कर सकते हैं। सेवा करने के लिए किसी को दूर जाने की आवश्यकता नहीं है। सेवा हम अपने आसपास के समाज में छोटे-छोटे कार्य को करके भी, बड़े कार्यों में रूपांतरित कर सकते हैं। अगर मान लिया जाए कि अगर किसी कॉलोनी में कोई व्यक्ति जागरूक है। और वह स्वयं घर से निकले गए कूड़े कचरे को रोड पर नहीं फेंकता है। और अपने पूरे कॉलोनी और मोहल्ले के लोगों को भी जागरूक करता है। कि कूड़े कचरे को रोड पर ना फेंके। इससे क्या-क्या बीमारियां हो सकती हैं। और स्वास्थ्य संबंधित क्या-क्या दिक्कतें आ सकती हैं। तो कॉलोनी मोहल्ला स्वयं ही साफ हो जाएगा। तो यह भी एक सेवा है। हम किसी भी रूप में सेवा संबंधित कार्य को प्राप्त कर सकते हैं। चाहे पेड़ लगाना हो, देश के प्रति आदर मान सम्मान बढ़ाना हो, बुजुर्गों का साथ देना हो, माता और पिता का आदर करना हो, कुछ लोग आश्रम में चले जाते हैं। सेवा करने के लिए बहुत ही अच्छी बात है। लेकिन अपने मां-बाप का भी आदर करना चाहिए। उसके उपरांत बचे हुए समय में आप आश्रम में भी जाएं। और वहां भी माता पिता तुल्य वृद्धजनों की सेवा कीजिए। हम घर के बाहर लगे पेड़ में पानी डालते हैं। और वह हमें छाया देता है। ऑक्सीजन देता है। हमारे हमारे वातावरण को स्वच्छ एवं साफ रखता है। वह भी एक सेवा है। हम सभी हरी साग सब्जी जो किचन से निकालते हैं। उसको प्लास्टिक में बांधकर रोड पर या कूड़ेदान में फेंक देते हैं। और उसे पशु आकर खाते हैं। वह प्लास्टिक उनके पेट में जाता है। पशु तड़प - तड़प के मर जाते हैं। आपको ऐसे खबरें मिलती होगी। तो हम क्यों नहीं प्लास्टिक से दूरी बनाए। जितना हो सके, प्लास्टिक का उपयोग कम से कम करें। और हर एक साग - सब्जियों को प्लास्टिक में बांधकर ना फेंके। तो किसी पशु की जान बच जाती है। हम सभी को स्वार्थी नहीं होना चाहिए। हम सभी को स्वाभिमानी एवं स्वावलंबी होना चाहिए। अपने कर्तव्य का सदैव निर्वाह करना चाहिए। हमलोगो को जो समय मिल सके। जो हो सके, अपने जीवन शैली का छोटा समय, सेवा में लगाना चाहिए। आपको सेवा तलाशने की जरूरत नहीं है। वह आपके आसपास ही करने को मिल जाएगी। बशर्ते आपको अपने कर्तव्यों का निर्वाह करने आना चाहिए। किसी को कड़वी बात न बोलना, यह भी एक सेवा है। किसी का अपने वचनों से ह्रदय दुखी ना करना, यह भी एक सेवा है। तो अंततः मैं आप सभी लोगों से यही कहना चाहूंगा। कि सेवा हर एक समय, हर एक जगह उपलब्ध है। आपको इसके लिए अलग से समय निकालने की जरूरत नहीं है। आप अपने जीवन को जीते हुए सेवा कर सकते हैं। अपने कर्तव्यों का निर्वाह कर सकते हैं। और समाज, देश, परिवार, राष्ट्र को एक अच्छा संदेश दे सकते हैं। हम सभी अपने मनुष्य जीवन को सफल कर सकते हैं।


लेखनी - शशि शंकर पटेल जी
( सचिव - यू.एस.एस.फाउण्डेशन )

भारत में कोरोना का रिकवरी रेट बहुत ही अच्छा है। लेकिन लापरवाही
गलियों में लॉकडाउन के बाद ही कोरोना हारेगा।
संकट छाया है चारों ओर, अब बायोलॉजिकल हथियार बनाने की लगेगी होड़....
उसकी कीमत भूल चुके है। जो भविष्य के लिए अनमोल....
आत्मकथा एक किसान की...
मां की ममता ....
काश राजनेता गांव गोद लेने की जगह बच्चों को गोद लेना, शुरू कर देते तो देश ....
नारी शब्द ही अतुलनीय है।
जब कोरोना की शुरुआत हुई। तो बाजार से सैनिटाइजर खत्म...
हे भगवान कितना बदल गया इंसान। आज इंसान ही इंसान को पहचानने......
मास्क न लगाकर अपने आपको थर्ड स्टेज में भेज रहे हैं। लेकिन.........
आज हम सभी अपने दिनचर्या में लगे हुए है। अपने कार्यों .........
          संस्था में गाया जाने वाला प्रार्थना    
            ।। जयति जय जय माँ सरस्वती  ।।
                   जयति वीणा धारणी
                  जयति पद्मासना माता
                  जयति शुभ वरदायिनी
                जगत का कल्याण कर माँ
                तुम हो विघ्न विनाशिनी
            ।। जयति जय जय माँ सरस्वती  ।।
               कमल आसन छोड़ कर माँ
                 देख जग की वेदना
               शान्ति की सरिता बहा दे
              फिर से जग में जननी माँ
           ।। जयति जय जय माँ सरस्वती  ।।
           ।। जयति जय जय माँ सरस्वती  ।।
           ।। जयति जय जय माँ सरस्वती  ।।
                    
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